पिछले महीने की शुरुआत में, दुनिया ने 2 दिसंबर को ‘अंतर्राष्ट्रीय दास प्रथा उन्मूलन दिवस’ के रूप में मनाया। यह 1949 में हुए एक महत्वपूर्ण संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की 72वीं वर्षगांठ थी।
इससे ठीक एक साल पहले, ‘भारतीय संविधान सभा’ ने चर्चा के लिए मसौदा अनुच्छेद 17 ( भारतीय संविधान 1950 , के अनुच्छेद 23) को चुना । इस मसौदे अनुच्छेद में यह कहा गया है कि ‘मनुष्यों और बेगार में मनुष्य व्यापार और इसी तरह के अन्य प्रकार के जबरन मजदूरी शामिल हैं और इस प्रावधान का कोई भी उल्लंघन कानून के अनुसार एक दंडनीय अपराध होगा।’
काजी सैयद करीमुद्दीन चाहते थे कि मसौदा अनुच्छेद में स्पष्ट रूप से ‘दासता’ का उल्लेख हो । दामोदर स्वरूप सेठ ने ‘दासत्व’ शब्द जोड़ने का प्रस्ताव रखा, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि यह भारत में दासता के हर प्रकार को शामिल करता है। के टी शाह ने महसूस किया कि ‘दासता एक उचित शब्द नहीं है – यह केवल जबरन मजदूरी के एक ही रूप को खुद में निहित करता है : मजदूर के रूप में इंसान की खरीद और बिक्री। इसमें देवदासी, बेगार और वेश्यावृत्ति जैसी प्रथाएं को शामिल नहीं किया गया है ।
ऐसा लगता है कि संविधान सभा, शाह की बात से सहमत थी। इसने मसौदा अनुच्छेद में दासता को नहीं जोड़ा , यह मानव तस्करी, बेगारी और जबरन मजदूरी के अन्य रूपों तक ही सीमित रहा ताकि भारत में मौजूद जबरन मजदूरी के व्यापक रूपों को शामिल किया जा सके ।
एक साल बाद, 2 दिसंबर 1949 को, भारत सहित 25 देशों ने ‘यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन फॉर द सप्रेशन ऑफ द ट्रैफिक इन पर्सन्स एंड ऑफ द एक्सप्लॉयटेशन ऑफ द प्रॉस्टिट्यूशन ऑफ अदर’ पर हस्ताक्षर किए। इस कन्वेंशन को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि यह महिलाओं की खरीद – बिक्री से लेकर उनके बंधुआ मजदूरी को भी कम करेगा। यह अवधारणा ,हमारे संविधान निर्माताओं की अवधारणा की तुलना में जबरन श्रम की एक संकीर्ण अवधारणा है ।
हालाँकि यह 1985 में बदल गया जब संयुक्त राष्ट्र के एक कार्यकारी समूह की रिपोर्ट ने 2 दिसंबर को ‘अंतर्राष्ट्रीय दास प्रथा उन्मूलन दिवस’ के रूप में मनाने का प्रस्ताव रखा। तब से, संयुक्त राष्ट्र इस दिन को दुनिया का ध्यान ‘ जबरन मजदूरी ‘ के तरफ खींचने के लिए मनाता रहा है । अब यह जबरन विवाह, सैन्य संघर्ष में बच्चों की जबरन भर्ती, ऋण बंधन और मानव तस्करी जैसी कई प्रथाओं को शामिल करके जबरन मजदूरी को अधिक व्यापक नज़रिए से देखता है।
This Piece is translated by Bhawna Sharma from Constitution Connect.